बाल्यकाल के खेल और संकेत – द्वेष की शुरुआत महाभारत की गाथा में पांडवों और कौरवों का बचपन वह महत्वपूर्ण काल था जब मासूम खेलों के बहाने भविष्य के संघर्षों के बीज बोए जा रहे थे। यह वह समय था जब बच्चों के मनोविज्ञान में छिपी ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा और द्वेष की भावनाएँ धीरे-धीरे प्रकट होने लगी थीं। बाल्यकाल के यही खेल और छोटी-छोटी घटनाएँ आगे चलकर महायुद्ध के रूप में परिवर्तित हो गईं। "Train With SKY" के साथ इस अध्याय में हम जानेंगे कि कैसे बचपन के मासूम दिखने वाले खेलों में भविष्य के संघर्षों के संकेत छिपे थे और कैसे इन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं ने द्वेष की नींव रखी। हस्तिनापुर में संयुक्त बचपन पांडवों और कौरवों का बचपन हस्तिनापुर के राजमहल में एक साथ बीता। भीष्म, विदुर और धृतराष्ट्र सभी की देखरेख में ये बच्चे बड़े हो रहे थे। बाहरी तौर पर सब कुछ सामान्य लगता था, परंतु भीतर ही भीतर कई भावनाएँ उबल रही थीं। प्रारंभिक वातावरण आयु: सभी बच्चे लगभग समान आयु के शिक्षा: द्रोणाचार्य और कृपाचार्य से साझा शिक्षा परिवेश: राजमहल का विशाल परिसर पारिवारिक सम्ब...
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